भारत कृषिप्रधान देश है और सरकार की हमेशा मंशा रही है कि किसानों के हालत सुधारे जाए। किसी भी सरकार के मन में कभी खोट नहीं रही। लेकिन हालात सुधारने की कोशिश में ऐसी कौनसी बुनियादी गलतियां हो रही है कि आजादी के इतने सालों बाद भी हमारी देश की मुख्यधारा को हम सुधारने में नाकाम हो रहे हैं। सरकारों की आलोचना करना बहुत आसान होता है और वह बहुत इजी टारगेट भी होती है, लेकिन हमेशा सरकारी तंत्र, बाबू लोग, अधिकारी आलोचना के केंद्र से हट जाते हैं। सरकारों को नाकाम करने का और उनकी पॉलिसियों को बरबाद करने का काम यहीं तंत्र करता है। आप लोगों का अनुभव और राय इस तंत्र को लेकर क्या है?